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Artikel-Nr. 38264274


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Autor(en): 
  • Kedarnath Singh
  • Matdan Kendra Par Jhapaki 
     

    (Buch)
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    Lieferstatus:   Auf Bestellung (Lieferzeit unbekannt)
    Veröffentlichung:  August 2018  
    Genre:  Romane, Erzählungen, Gedichte 
    ISBN:  9789387462878 
    EAN-Code: 
    9789387462878 
    Verlag:  Repro India Limited 
    Einband:  Gebunden  
    Sprache:  Hidni  
    Dimensionen:  H 216 mm / B 140 mm / D 8 mm 
    Gewicht:  240 gr 
    Seiten:  72 
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    Inhalt:
    मतदान केन्द्र पर झपकी ये कविताएँ एक कवि का पक्ष रखती हैं जिसे केदार जी इक्कीसवीं सदी की दूसरी दहाई में आकर पक्षहीन हो चुके हम लोगों को सौंप रहे हैं। ये कविताएँ हिंसा के विशाल परदे के आगे एक मनुष्य का हिंसक होने से इनकार हैं-देखने में बहुत विनम्र, विनीत, लेकिन चट्टान-सा सख्त, दृढ़ और निर्णायक।ज़रूरी नहीं कि उनकी सूची में हमारा नाम हो ही, जिनका नाम किसी सूची में नहीं, उनकी भी एक दुनिया है, जिसका नेतृत्व पेड़ करते हैं, और आपस में टकराते सत्ता के काले-पीले-सफेद नारों के बरक्स जिसके पास पृथ्वी के सबसे सटीक और सबसे सुन्दर नारे हैं। वे नारे जो नदियों को उनका पानी, चींटियों को उनके बिल और आँखों को उनकी झपकी लौटा देने की पैरवी कर रहे हैं। इस संग्रह को पढ़ते हुए हमें इन रवहीन नारों की ताकत का अहसास होता है।केदार जी अब हमारे बीच नहीं हैं, उनकी कविताओं का यह संकलन एक वसीयत की तरह हमारे पास रहेगा जिसमें संसार की सबसे मूल्यवान वस्तु, मनुष्यता, की देख-रेख की जि़म्मेदारी वे हमें सौंप रहे हैं।''पृथ्वी के सारे खून एक हैं/एक ही यात्रा में/एक ही पृथ्वी-भर लम्बी देह में/दौड़ रहे हैं वे/अरबों धड़कनें एक ही लय में/घुमा रही हैं दुनिया को/ हर खून/हर खून से बतियाता है।'' ये कविताएँ अपने सहज, निरायास आग्रह के साथ हमें खून से बातें करते खून की आवाज़ सुनने को कहती हैं। ''क्षमा करें भद्रजन/यदि फिर पूछ रहा हूँ मेरे देश के एक हाथ को/एक खुले हुए भूखे मुँह तक पहुँचने में/कितने बरस लगते हैं? यह एक निर्दलीय प्रश्न है, लेकिन निरपेक्ष नहीं, यह मनुष्यता की आहत कोख में चीखता प्रश्न है; उम्मीद है हम इसका जवाब ढूँढ़ने का प्रयास करेंगे!

      



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